Wednesday, 19 November 2014

मंदिरों की घंटी

  हमें इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम उस सनातन धर्म का हिस्सा हैं जिसकी छोटी से छोटी परम्पराओं में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई है।

प्राचीन समय से ही देवालयों और मंदिरों मै घंटिया लगाने की प्रथा है।  मंदिरों की घंटी कोई सामान्य धातु बल्कि Cadmium, Lead, Copper, Zinc, Nickel, Chromium and Manganese इत्यादि के मिश्रिन से बनाई जाती है! 

घंटी मै इन धातुओं को ख़ास अनुपात में मिलाया जाता है ताकि इससे निकलने वाली ध्वनि तीखी तो हो लेकिन कर्णप्रिय हो उस घंटी की कम्पन कम से कम सात सेकेण्ड तक बनी रहे और हमारे शरीर में मौजूद सातों चक्र भी जागृत कर देती है।  

इससे हमारे शरीर मेँ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाते हैं। इस तरह जब घंटे को बजाया जाता है तो उसकी ध्वनि हमारे दिमाग में चेतन और अवचेतन मस्तिष्क पर असर डालती है और हमें तनावमुक्त कर देती है। 

मन्दिर की घण्टी की टन्कार से हमारा पित्त दोष कम होता है।  इसीलिए हम गऊ माता के गले में भी घण्टी बान्धते है क्योंकि गाय मै पित्त बहुत अिधक होता है।      

जब घंटी बजाई जाती है तो वातावरण में एक कंपन पैदा होता है जिसके प्रभावक्षेत्र में आने वाले सभी खतरनाक जीवाणु, विषाणु और सूक्ष्म जीव आदि नष्ट हो जाते हैं और आसपास का वातावरण शुद्ध हो जाता है।

प्रत्येक मंदिर मे धण्टी तीन स्थान पर प्रयोग होती है।  यह महज़ परंपरा नहीं अपितु इस के पीछे ठोस अध्यात्मिक और बैज्ञानिक कारण है। 

मुख्य विशाल धण्टी मंदिर के प्रान्गन मै लगी होती है, इसे आरती के दौरान और समय की सुचना के लिए बजाया जाता है। 

सदीयो से हमारे मंदिरों मै समय की गण्ना सुर्योदय से शुरू की जाती थी। अपने मन्दिरो में एक छोटी घड़ी में सुखी मिट्टी भरी जाती थी। उस छोटी घड़ी के तले में छेक कर दिया जाता था।  फिर मिट्टी उस छोटी घड़ी से उसके नीचे रखी दुसरी छोटी घड़ी गिरती थी. 

सूक्ष्म गणना से छोटी घड़ी में मिट्टी इतनी भरी जाती थी कि एक दिन मैं छोटी घड़ी ६० बार ख़ाली हो जाए। आज के समय के हिसाब से एक छोटी घड़ी क़रीब २४ मिनट मै ख़ाली होती थी। 

छोटी घड़ी २ बार ख़ाली होने पर एक मुहूरत् पुरा
माना जाता। हर मुहूरत् के बाद मन्दिर के प्रांगण में लगा विशाल घन्टा बजाया जाता था। उसकी टन्कार से पुरे गाँव को समय का बोध रहता था। अंग्रेज़ी शब्द "ओवर" को हिन्दी मै "धण्टा" इसी लिए कहा जाता है। 

इसी घड़ी की गणना के अनुसार मन्दिर में आरती शुरू करी जाती थी। आरती के दौरान भी यह विशाल "धण्टा" बजाया जाता जिससे सम्पुर्ण गाँव को आरती के प्रारंभ होने की सुचना मिल जाती थी। इस विशाल घण्टे की टन्कार से वहाँ नकारात्मक शक्तियाँ पूरी तरह निष्क्रिय रहती हैँ! 

दुसरी घण्टी मन्दिर के प्रवेश द्वार पर लगी मध्यम आकार की घण्टी है।  जब भक्त मन्दिर मे प्रवेश करते है वे प्रवेश द्वार की घण्टी के ठीक नीचे खड़े होकर उस घण्टी को बजाते है। 

जब हम मन्दिर की घण्टी की लुप्त होती टन्कार मै अपना ध्यान लगाए तो हमारा चित्त संसारिक परेशानियों से हट कर ईशवर के दरबार मै केन्द्रित्त हो जाता है। मन्दिर के बाहर आते हुए भी हम फिर मन्दिर की घण्टी बजाते है। इससे हमारा भक्ति का सम्मोहन टुटता है और हम वापस संसारिक सचाई मै आ जाते है।  

तीसरी घण्टी हाथ मै पकड़ने की छोटी घण्टी।  सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है तो, एक लय अथवा विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं जिससे वहाँ मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है।

सीए दिनेश गुप्ता 
९८११०४५०६३

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