"अग्रवाल समुदाय" पिछले 5100 सालों से भारत के सबसे सम्मानित उद्यमी समुदाय मैं से एक रहा है। अग्रवाल जाति के लोग महाराज अग्रसेन के वंशज है और उनके द्वारा स्थापित "अग्रोहा" राज्य के मूल निवासी हैं। इसलिए अग्रवाल केवल एक समुदाय ही नहीं है, अपितु एक परिवार हैं।
भारत सरकार ने भी महाराज अग्रसेन की 5100 वी जयंती के अवसर पर 1976 में महाराज अग्रसेन के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था।
महाराज अग्रसेन का जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण में लगभग 5138 साल पहले हुआ था। वे सूर्यवंशी राजा थे। वे प्रतापनगर के महाराजा महिन्दर के पोते थे, तथा महाराजा वल्लभ और रानी भागमती देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे। वे खान्डवपर्स्थ के राजा ययाति के वंशज थे और राजा शुरसेन के बड़े भाई थे जो बलराम और मगवान कृष्ण के दादा थे।
राजकुमार अग्रसेन ने नागवन्श राजा कुमुद की बेटी, राजकुमारी माधवी के स्वयंवर में भाग लिया। राजकुमारी माधवी ने शुभ माला डाल कर उन्हे अपना पति स्वीकार किया।
एक पड़ोसी राजा राजकुमारी माधवी से शादी करना चाहता था। उसको राजकुमार अग्रसेन से जलन हो गयी और बदला लेने के लिए उसने प्रतापनगर को घेर लिया। नतीजतन, प्रतापनगर के निवासियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा। महाराज अग्रसेन ने धर्मयुद्ध छेड़ कर दुश्मन की सेना को पराजित किया।
दीर्घकालिन शांति सुनिश्चित करने हेतु महाराज अग्रसेन ने काशी में भगवान शिव की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महाराज अग्रसेन को देवी महालक्ष्मी की प्रार्थना करने की सलाह दी।
देवी महालक्ष्मी ने महाराज अग्रसेन को एक नये राज्य को स्थापित करने का आदेश दिया और हथियार छोड़कर अपने राज्य के लोगों की समृद्धि हेतु व्यापार की परंपरा अपना लेने को कहा। देवी ने आशीर्वाद दिया कि उनके इस राज्य के सभी लोग और वंशज समृद्ध होगे।
महाराज अग्रसेन ने नए राज्य का स्थान चयन करने के लिए अपनी रानी के साथ पूरे भारत में भर्मण किया। एक क्षेञ में उन्होंने कुछ बाघ शावकों को भेडीया शावकों के साथ खेलते देखा। इसे वीर भूमि का शुभसंकेत मान कर उन्होंने उस स्थान पर नए राज्य की स्थापना की।
महालक्ष्मी के आशीर्वाद से महाराज अग्रसेन ने महाभारत के युद्ध से 51 साल पहले "अग्रोहा" में एक बहुत समृद्ध और विकसित राज्य का निर्माण किया। महाराज अग्रसेन के राज्य का महाभारत में भी उल्लेख मिलता है।
महाराज अग्रसेन ने राज्य को हिमालय, पंजाब, यमुना की तराई, और मेवाड़ क्षेत्र तक बढ़ाया। आगरा राज्य के दक्षिणी भाग का एक प्रमुख व्यापारिक स्थान था। गुड़गांव (जहाँ अग्रवाल समुदाय की देवी माँ प्रतिष्ठित है), मेरठ, रोहतक, हांसी, पानीपत, करनाल , कोट कन्गडा (जहाँ अग्रवालो की कुलदेवी कोट स्थित है) मंडी, विलासपुर, गढ़वाल, नारनौल राज्य के अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों थे। अग्रोहा शहर राज्य की राजधानी थी। http://www.kangrapilgrimage.org/vtemple.html
दिल्ली कनॉट प्लेस स्थित अग्रसेन की बावली, मूल रूप से महाराज अग्रसेन ने बनवायी थी और अग्रवाल समुदाय ने 14वीं सदी में इसे दुबारा बनवाया था।
महाराज अग्रसेन ने वानिक धर्म का पालन किया और उन्होंने यज्ञ में पशुओं को वध करने से इनकार किया।
महाराज अग्रसेन के ज्येष्ठ पुत्र वीभु थे। महाराज ने 18 महा यज्ञों का आयोजन किया। उसके बाद उन्होंने अपने 18 बच्चों के बीच अपने राज्य को विभाूजित किया। है अपने प्रत्येक बच्चों के गुरु के नाम से 18 गोञो की स्थापना की।
आज ये 18 गोञ एक दूसरे से अलग हैं, फिर भी सभी गोञ संयुक्त है और एक दूसरे से संबंधित हैं। अग्रवालो के अठारह गोञ निम्न हैं। गर्ग, बंसल, बिंदल, भन्दल, धरान, ऐरन, गोयल, गोयन, जिंदल, कंसल, कुछल, मधुकल, मंगल, मित्तल, नंगल, सिंघल, तायल, झुनझुनी।
अग्रोहा राज्य की 18 राज्य इकाइयों थी। प्रत्येक राज्य की इकाई को एक गोञ से अंकित किया गया था। उस विशेष राज्य इकाई के सभी निवासियों की उस गोञ द्वारा पहचान की गई।
महाराज अग्रसेन ने एलान किया कि विवाहिक गठबंधन एक ही गोञ में नहीं हो सकता है । यही कारण है कि "गोयल" गोञ का एक लड़का "गोयल" गोञ की एक लड़की से शादी नहीं कर सकते है, लेकिन अन्य 17 गोञ में से किसी में भी शादी की जा सकती है।
महाराज अग्रसेन द्वारा प्रतिपादित यह नियम से 18 गोञ राज्य इकाइयों के प्रतिनिधित्व करने वालों के बीच सद्भावना उत्पन्न हुई और अग्रवाल समाज मैं आनुवंशिकी विविधता सुनिश्चित हुई।
महाराजा अग्रसेन के भगवा ध्वज अहिंसा और सूर्य का प्रतीक है। ध्वज के सामने से वी-आकार कटौती की गई है। सूर्य की 18 किरणे 18 गोत्र के प्रतिनिधित्व करती है। ध्वज में चांदी के रंग की एक ईंट और एक रुपए वैभव, भाईचारे एवं सहयोग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
महाराजा अग्रसेन को अहिंसा, शांति के दूत, त्याग, करुणा, दान और समृद्धि के प्रतीक रूप में जाना जाता है। वे न केवल एक राजा थे बल्कि दलितो के उत्थान के एक नेता भी थे। उन्होंने अपने राज्य के सभी निवासीयो की समृद्धि की कामना की। उन्होंने समाज में समानता सुनिश्चित करने के क्रम में एकअद्वितीय नियम बनाया।
उन्होंने कहा कि स्थायी रूप से बसने के लिए अग्रोहा मै आने वाले हर व्यक्ति को अग्रोहा का प्रत्येक निवासी एक रुपया और एक ईंट देगा । उन ईंटों के साथ एक घर का निर्माण किया जा सकता था और पैसे के साथ वो व्यक्ति खुद का व्यवसाय स्थापित कर लेता था। इस तरह प्रत्येक व्यक्ति दूसरों की मदद से समाज में एक बराबरी का दर्जा हासिल कर लेता था।
महाराजा अग्रसेन के अनुसार अहिंसा का मतलब ये नहीं की हम दमन का प्रतिरोध भी नहीं करे। उन्होंने ने अात्मविश्वास और आत्मरक्षा को बढ़ावा दिया। उनके अनुसार आत्मसुरक्षा और राष्ट्रीय रक्षा केवल सैनिकों का नहीं अपितु प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
5000 साल पहले महाराजा अग्रसेन द्वारा प्रतिपादित समानता और समाजवाद के विचारों को भारत के वर्तमान संविधान में भी अन्कित किया गया हैं।
हम सभी को चाहिए की हम महाराज अग्रसेन के इन आदर्शों को अपने जीवन में उतारे और भारत मातृभूमि की महिमा बढ़ाने मैं और सबही भारतवासी को समृद्ध बनाने मैं अपना योगदान दे।
बहोत अच्छी जानकारी है
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