Friday 28 November 2014

पेपर, स्टायरोफोम और प्लास्टिक के कपो का ख़तरा।


पेपर, स्टायरोफोम और प्लास्टिक के कपो का ख़तरा।  

वरुण नागपाल, टेक्नोपार्क में कार्यरत एक आईटी पेशेवर के पेट मै दर्द हो रहा था। सामान्य चिकित्सा जांच में कुछ भी गलत नहीं पाया गया, जबकि गहरी जांच से ज्ञात हुआ कि उसके पेट मै मोम और विषाक्त पदार्थों की काफ़ी मात्रा इकट्ठी थी।

खोज से पता चला कि वह अपने कार्यालय में पांच बार हर दिन चाय पीने के लिए मोम लेपित काग़ज़ के कप इस्तेमाल करता था । 

कागज के कप के हानिकारक साइड इफेक्ट की अनदेखी करते हुए, हम जरूरत से ज्यादा इन का प्रयोग कर रहे हैं। हम कई बार फोम कप या प्लास्टिक के कप से भी गर्म पेय पीते हैं पर ये और भी ज़्यादा घातक है।



पेपर कप

एक शताब्दी पहले पेपर कप का आविष्कार रोग संचरण कम करने के लिए कम लागत के उपाय के रूप मै किया गया था।

पेपर कप इन्सुलेशन और स्थायित्व के लिए मोम या पॉलीथीन के साथ लेपित हैं। एक कागज कप में गर्म पेय डालने से मोम पिघल कर हमारे गर्म पेय के साथ-साथ हमारे पाचन तंत्र में मिलते जाते है।

इन कागज के कप का उपयोग करते समय हमारे पेट और पाचन तंत्र मै मोम और ज़हरीले रसायनों की काफ़ी मात्रा इकट्ठी हो जाती है जो एक संदिग्ध कैसरजन भी है।

कागज का कप ज़्यादा तर प्लास्टिक के ढक्कन के साथ ही उपलब्ध होता है। प्लास्टिक के ढक्कन और गर्म तरल पदार्थ की रासायनिक प्रतिक्रिया से भोजन विषाक्तता ओर भी ज़्यादा फलती है। 

इन डिस्पोजेबल कागज के कप के निर्माण के लिए निश्चित मानक हैं जो यह सुनिश्चित करते है कि कागज के कप मै परोसे गए गर्म तरल पदार्थ विषाक्त नहीं हो जाए।

हालांकि, ज्यादातर निर्माता इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करते। पेपर कप उत्पादन की लागत को कम करने के लिए ये उत्पादक औद्योगिक मोम और हानिकारक प्लास्टिक का उपयोग करते हैं।

कप के जोड़ को मैलामाईन से चिपकाया जाता है जो हमारे गर्म पेय के साथ संपर्क में आते ही पिघलने लगता है।  फिर ये मैलामाईन हर घूंट के साथ हमारे शरीर मै जा कर हमें  गुर्दे की गंभीर बीमारी से पीड़ित करता है। 


 
फोम कप

स्टाईरीन फोम चाय के कप और खाद्य ट्रे बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। 

स्टाईरीन फोम कप और खाद्य ट्रे को हम इस लिए सुरक्षित माते हैं, कि अगर वे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती तो भारत सरकार इनके उत्पादन की अनुमति कभी नहीं देती। भोजन को फोम कंटेनर मै माइक्रोवेव में गर्म  करने से भी उसकी विषाक्तता बढ़ती है। 

अगर हमें यह पता चले की फोम कप के उपयोग  के दौरान उसका वजन कम होता है तो हम हैरान हो जाएँगे। अगर हम तीन साल के लिए फ़ोम कप से दिन मै चार बार गर्म पेय पदार्थ पीते हैं, तो हम एक फोम कप के बार मात्रा की Styrene पी जाते है।

स्टाईरीन के कारण हम थकान, घबराहट, नींद में दिक्कत, कम प्लेटीलेट जैसी और कई गम्भीर बीमारी से पीडीत होते है।



प्लास्टिक के कप

चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार प्लास्टिक के कप में कोई भी गर्म पेय पीने से कैंसर होने की सम्भावना बढ़ती है। जब भी प्लास्टिक  गर्म पेय के साथ संपर्क में आता है, जब वह 52 प्रकार के कैंसर का कारण हो सकता है।

प्लास्टिक के कप की विषाक्तता के कारण पशुओं में प्रजनन सम्बन्धित रोग और मनुष्यों में हृदय  और मधुमेह के रोग होते है।



पर्यावरण दुष्परिणाम:

कागज के कप, स्टायरोफोम कप और ट्रे और प्लास्टिक के कप का पर्यावरण के लिए भी गंभीर ख़तरा है। कप बनाने में इस्तेमाल किया गया पॉलीथीन और मोम पेट्रोलियम से बनाया जाता है इसलिए ये कभी विघटित नहीं होते। 

दुनिया से हर वर्ष कागज के अरबों कपो की वास्तविक लागत है। इसको बनाने मै करोड़ों  टन लकड़ी और पानी बर्बाद होती है और लाखों टन कचरा पैदा होता है। कागज के कप के लिए इस्तेमाल किया गया हर पेड़ कटने से धरती पर प्रदूषण बढ़ता है।

अधिकांश कप बनाने मै उच्च गुणवत्ता वाला वर्जिन पेपरबोर्ड का ही उपयोग करते है।  हाल ही में, कुछ कॉफी की दुकानों ने पुनर्नवीनीकरण सामग्री के कप प्रयोग करने का दावा किया है। पर क्या ये सन्कल्प नयी लकड़ी की खपत को कम करता हैं? सरकारी एजेंसियों अधिकतम 10% पुनर्नवीनीकरण सामग्री और 90% नये कागज के इस्तेमाल की ही अनुमति देती है। 


समाधान के लिए:

इसके बारे में क्या किया जा सकता है? हम कार्यालय और कॉफी दुकानों पर अपने स्वयं के स्टेनलेस स्टील, चीनी मिट्टी या कांच के मग का उपयोग शुरू कर देना चाहिए। मात्र 25 बार इस्तेमाल के बाद स्टेनलेस स्टील के कप, कागज के कप से भी अधिक पर्यावरण के अनुकूल विकल्प बन जाता है।

इसलिए हम अपने पसंदीदा कॉफी बार मै जाने के समय अपने स्वयं के मग ले जाने शुरू कर देना चाहिए। हमे कागज, प्लास्टिक और फोम कप के वास्तविक खतरे के बारे में हमारे मित्रों को आगाह करना चाहिए।

कॉफी की दुकानों और सभी कार्यालयों मै अपने स्वयं के कप इस्तेमाल करने के लिए ग्राहकों और कर्मचारियों को कुछ वित्तीय प्रोत्साहन की भी पेशकश दी जानी चाहिए।

हम धन्य है कि भारत की संस्कृति में हम भंडारण, ठंडा करने और पीने के पानी के लिए मिट्टी के बर्तन पर पूरी तरह से निर्भर थे। पुराने समय मै हर समारोह मै पत्तल मै ही भोजन परोसने की प्रथा थी। एक बार उपयोग हो सकने वाले मिट्टी के कुल्ड में परोसा गया गर्म दुघ और चाय बहुत स्वादिष्ट भी लगती है। ये पर्यावरण के अनुकूल और इतनी आसानी से डिस्पोजेबल है।





सीए दिनेश गुप्ता जी-१८

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