Wednesday, 31 December 2014

मल मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी (Paush month shukla paksha Putrda Ekadashi)




आज मल मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी (Paush month shukla paksha Putrda Ekadashi) है। यह व्रत हमें अपने जीवनसाथी के साथ रखना चाहिए। हमें दशमी को केवल दोपहर तक ही भोजन करना चाहिए। एकादशी के दिन केवल जल लेना चाहिए। अगर व्रती मैं कमज़ोरी है तो संध्या काल मै फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी तिथि को सूर्योदय तत्पश्चात भोजन करें।

यह सर्वमान्य है कि २५ धण्टे से ज़्यादा समय का व्रत रखने से शरीर में कफ नियंत्रित होता है, ख़ून का विषैलापन समाप्त होता है और कर्क रोग की कोशिकाये धुल जाती है। विष्णु को समर्पित एकादशी व्रत को शास्त्रों एवं पुराणों में काफी महत्व दिया गया है। जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करते हैं उनका शारीरिक स्वास्थ्य, लौकिक और पारलकिक जीवन संवर जाता है।  एकादशी व्रत रखने वाला स्वयं भी सुख पाता हैं और दूसरों को भी सुखी रहने मदद करता है।  

वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति को वर्ष मे आने वाली सभी एकादशी का व्रत रखना चाहिए पर हम केवल अपनी विशेष कामना की पूर्ति से सम्बन्धित व्रत भी रख सकते हैं। हर एकादशी व्रत किसी विशेष कामना की पूर्ति के लिए होता है।  मल मास के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी (Paush month shukla paksha Putrda Ekadashi) का व्रत यशस्वी पुत्र प्राप्ति और परिवार के बच्चों मैं अच्छे संस्कार हेतु पति पत्नी द्वारा जोड़े में रखा जाता है। 

पुत्रदा एकादशी की कथा पद्म पुराण में वर्णित है। इस व्रत को दस विश्वदेव के कहने पर भद्रावती के राजा सुकेतु ने किया था। राजा सुकेतु प्रजा पालक और धर्मपरायण राजा थे। उनके राज्य में सभी जीव निर्भय एवं आन्नद से रहते थे, लेकिन राजा और रानी स्वयं यस्सवी पुत्र हीन थे। संयोगवश वहां उनकी मुलाकात ऋषि विश्वदेव से हुई    राजा ने अपना दु:ख विश्वदेव को बताया। राजा की दु:ख भरी बातें सुनकर विश्वदेव ने कहा राजन आप पष शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत कीजिए, इससे आपको यशस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी। राजा ने ऋषि की सलाह मानकर व्रत किया और उनकी मनोकामना पूर्ण हुई। उनका राजकुमार बहुत ही प्रतिभावान और गुणवान हुआ वह अपने पिता के समान प्रजापालक और धर्मपरायण राजा हुआ।

धर्मराज युधिष्ठिर को श्री कृष्ण ने पोष माह की शुक्ल पुत्रदा एकादशी के विषय में ज्ञान दिया था। श्री कृष्ण कहते हैं जो इस व्रत का पालन करता है उसे ऐसे योग्य पुत्र का सुख प्राप्त होता है जो पिता एवं कुल की मर्यादा को बढ़ाता है।


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