Tuesday, 28 October 2014

" पेप्सी और कोक कविता "

" पेप्सी और कोक कविता "

पेप्सी बोली सुन बहन कोका कोला !
भारत का हर इन्सान है बहुत भोला।

विदेश से हम दोनो आयी है, 
साथ में मौत के ज़हर को लायी है ।

लहर नहीं ज़हर है हम, 
गुर्दों पर गिरता कहर है हम ।

कोक नहीं कोप है हम
भारत के दुश्मनों का होप है हम। 

आर्टीफिसीयल कैफीन से भरपुर है हम
काराण गिरते स्पर्म काऊट का है हम

हमारा पी.एच. है दो पॉइन्ट सात, 
हममें  में गिरकर गल जायें दाँत 

हमारा एसिड न करता माफ़ 
टॉयलेट पोट भी हो जाता साफ़ 

जिंक आर्सेनीक लेड है हम, 
आतों को काटे, वो ब्लेड है हम ।

हाँ गऊमाता का दूध हमसे सस्ता है, 
फिर क्यों पीकर हमको इन्सान मरता है ।

ज़मीन से पानी निकाल कर हमने
भारत को बन्जर बनाया है हमने। 

हम पहुँची है आज वहाँ पर, 
पीने को नहीं पानी जहाँ पर ।

हज़ारों  करोड़ हम कमाती है, 
सब बटोर कर विदेश में ले जाती है ।

सुन कर इन बहनों की बात
अपनी क़िस्मत है अब अपने हाथ। 

भारत का पानी मैं घुली है १५% चीनी 
विदेशियों से ख़रीद कर पड़ती है पीनी

भाईयों अब तो हम होश मैं आए
इन मौत के सौदागरों को भगाए

छोड़ो नकल अब अकल से जीयो, 
जो कुछ पीना संभल के ही पीयो ।

ताज़ा शिकन्जी. नारियल. अमरस
सच मैं अम्रित है गन्ने का रस। 

बच्चों को यह कविता सुनाओ,
स्वदेशी अपनाओ, देश बचाओ ।

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